छत्रपति संभाजीनगर: देश भर में वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर पक्ष-विपक्ष में चर्चा जारी है। लोकसभा में विधेयक पेश होने के बाद आज राज्यसभा में वक्फ पर चर्चा जारी है। इस दौरान सदन के बाहर भी इस बिल को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी है। इस विधेयक पर वारिस पठान के विरोध प्रदर्शन करने के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) के नेता और पूर्व सांसद इम्तियाज जलील ने गुरुवार को आरोप लगाया कि सरकार मौजूदा वक्फ अधिनियम में संशोधन करके बड़े उद्योगपतियों को जमीन सौंपना चाहती है।
इम्तियाज जलील ने सवाल किया कि क्या प्रमुख मंदिरों का प्रबंधन करने वाले न्यासों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति की जाएगी। जलील ने संवाददाताओं के साथ बातचीत में दावा किया कि लोकसभा द्वारा पारित और गुरुवार को राज्यसभा में पेश किया गया वक्फ (संशोधन) विधेयक, उन नेताओं को बचाने का प्रयास करता है जिन्होंने वक्फ संपत्तियों पर कब्जा किया है। एआईएमआईएम की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष ने विधेयक में प्रस्तावित वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति के पीछे के औचित्य पर सवाल उठाया और जानना चाहा कि क्या अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधि बड़े मंदिरों का प्रबंधन करने वाले न्यासों में शामिल हो सकते हैं।
मंदिर ट्रस्ट में शामिल होंगे गैर-हिंदू?
उन्होंने सवाल किया, ‘‘अगर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति की जा रही है, तो क्या वे इम्तियाज जलील को शिर्डी साईंबाबा (मंदिर) ट्रस्ट या तिरुपति मंदिर ट्रस्ट में शामिल करेंगे। अगर सिख समुदाय के लिए ऐसा बोर्ड आता है, तो किसी गैर-सिख की नियुक्ति नहीं की जा सकती। तो, ऐसी चीजें केवल वक्फ बोर्ड के लिए ही क्यों हैं?”
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छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) से पूर्व लोकसभा सदस्य जलील ने आरोप लगाया कि राजनीतिक दलों के लोगों ने वक्फ की जमीनों पर कब्जा कर लिया है और विधेयक ऐसे व्यक्तियों को संरक्षण देने की कवायद है। जलील ने दावा किया, ‘‘केंद्रीय वक्फ परिषद केंद्र सरकार के अधीन आती है। अध्यक्ष का फैसला मुख्यमंत्री (राज्य वक्फ बोर्डों में) करते हैं। अगर कुछ गलत हो रहा है, तो केंद्र और संबंधित राज्य को जांच कराने का अधिकार है। ऐसा कहा जाता है कि वक्फ बोर्ड देश का तीसरा (रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद) सबसे बड़ा भू स्वामी है लेकिन, यह केवल कागजों पर है।”